यह बीमारी होने के कारण क्या है
वे़न् ब्लड पैरों से दिल की तरफ गुरुत्वाकर्षण के विपरीत ले जाती है , इसके लिए वे़न् में वाल्व होते हैं, जिससे खून केवल ऊपर की तरफ ही जाये. पैरों में मुख्यता काफ की मांसपेशिया पंप की तरह काम करती हैं, एयर खून को ऊपर की तरफ पंप करती है.
जब मांसपेशियां खून ऊपर की तरफ पंप करती हैं तो वाल्व खुल जाते हैं , खून ऊपर जाने के बाद ये बंद हो जाती हैं और खून नीचे की तरफ नहीं आ पता।
अगर ये वाल्व ख़राब हो जय या मांसपेशियां खून पंप न कर पाएं तो ये नसें फूलने लगती है जिन्हे हम वैरिकोस वे़न् कहते हैं .
रिस्क फैक्टर
( उम्र) बढ़ती उम्र के साथ वैरिकोस वे़न् होने की समस्या बढ़ने लगती है, ये वाल्व और मांसपेशियों में कमजोरी का कारण भी हो सकती है .
सेक्स महिलाओं में जयदा कॉमन होती है .
प्रेगनेंसी प्रेगनेंसी में वे़न् पे प्रेशर के कारण ,ब्लड सर्कुलेशन बढ़ने के कारण और हार्मोनल बदलाव के कारण।
फैमिली हिस्ट्री जिन लोगों की फॅमिली में ( डायरेक्ट ब्लड रिलेशन ) ये समस्या होती है .
ओबेसिटी जयदा वजन होने से भी वैरिकोस वे़न् का खतरा ज्यादा रहता है .
जयदा देर तक खड़े या बैठे रहने से जयदा देर तक एक ही पोजीशन में बैठे रहने पर पैरों में खून के फ्लो में रुकावट होती है , मांसपेशियों का पंप एक्शन ठीक से काम नहीं करता .
इससे बचने के लिए सुझाव
वेरिकोस वे़न् से पूणतः बचने के लिए कोई उपाय नहीं है , पर ब्लड सर्कुलेशन को बढ़ा कर मांसपेसियों की टोन को बढ़ा कर इस बीमारी से कुछ हद तक बचा जा सकता है .
1) वजन काम करके
2) ब्यायाम ( एक्सरसाइज)
3) ज्यादा देर तक एक ही पोजीशन में बैठने या खड़े रहने से बचें
4) हाई हील के फुट वियर न पहने
5) जयदा टाइट कपडे न पहने
6) पैरो को थोड़ा उचाई पर रखें
वेरिकोस वे़न् को कैसे पहचने ( डायग्नोसिस )
वैरिकोस वे़न् की डायग्नोसिस डॉक्टर द्वारा मरीज की फिजिकल एग्जामिनेशन करके तथा कुछ जांचें करा कर, कर सकते हैं।
मुख्यता मरीज की फूली हुई खून की नसें , पैरों में काला पन खुजली और घाव से इसकी पहचान हो सकती है।
जांचों में मुख्यता डॉप्पलर होता है . यह एक बहुत ही आसानी से होने वाला टेस्ट है जो अल्ट्रासाउंड मशीन द्वारा होता है . इसमें किसी भी तरह की प्रिपरेशन की जरूरत नहीं होती है . सामान्यता यह लेट के और खड़ा करके दोनों पोजीशन में होता है।
कुछ मरीजों में डॉप्पलर के अतिरिक्त सी टी अन्गिओग्राम और वेनोग्राम की जरूरत पड़ती है।
वेरिकोस वे़न् का इलाज ( ट्रीटमेंट)
बदलते हुए समय के साथ वेरिकोस वे़न् के ट्रीटमेंट में बहुत से आधुनिक तरीकों का इज़ाफ़ा हुआ है और अब ये डे केयर सर्जरी में किया जाता है। पुरानी तकनीक में बदलाव के साथ अब ये बिना किसी कट या चीरा लगाए किया जा सकता है।
सेल्फ केयर मरीज अपना खुद ख्याल रख कर इससे कुछ हद तक बच सकता है। रेगुलर एक्सरसाइज करें, वजन पर कंट्रोल रखें, ज्यादा देर तक एक ही पोस्चर या पोजीशन में ना रहें।
कम्प्रेशन स्टॉकिंग
जयदा तर मरीजों में ये पहला इलाज या माध्यम होता है वेरिकोस वे़न् के इलाज में, इस को लेकर काफी कॉन्ट्रोवर्सीज रहती हैं पर मै सामान्यता इसको इस्तेमाल करता हूँ।
बहुत सी ऐसी स्थितियां होती हैं जिसमे कम्प्रेशन स्टॉकिंग देना उचित नहीं होता है और ये नुकसान भी कर सकती है . उनको हमे स्टॉकिंग के लिए सलाह करने या पहनने से पहले सोच लेना चाहिए . बहुत से मरीजों में जिनमे हमें ये संसय रहता है की मरीज को जो पैरों में प्रॉब्लम है वो वेरिकोस वे़न् से है या किसी अन्य वजह से तो हम उनमें कम्प्रेशन स्टॉकिंग दे कर उसका रिस्पांस देखते हैं जिसे हम ट्रायल स्टॉकिंग कहते हैं . यदि मरीज रिस्पॉन्ड् करता है तो हम ये मान सकते है की परेशानी वेरिकोस वे़न् की वजह से है .