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लखनऊ में पांच साल!

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लखनऊ में पांच साल ! अगर किसी राजनैतिक पार्टी के पांच साल होते तो बहुत से लोग उनका आकलन करते नफे नुकसान का जिक्र होता, पर एक डॉक्टर के 5 सालों का जिक्र कौन करेगा। एम एस जनरल सर्जरी करने के बाद जब सुपरस्पेशलिटी की बात आई तो भाग्य ने बेंगलुरु के नारायना ह्रुदालया भेज दिया। तीन साल की ट्रेनिंग, योग डॉक्टरों का सहयोग, वैस्कुलर सोसाइटी ऑफ इंडिया के सानिध्य में यह 3 वर्ष बहुत ही अच्छे से व्यथित हो गए। फिर आगे के बारे में सोचने का समय आया, पारिवारिक स्थिति, सहभागी की सलाह के साथ लखनऊ आना हो गया।
एक ऐसी सुपर स्पेशलिटी जिसमें उत्तर प्रदेश में कोई नहीं था, मुझे ही शुरुआत करनी थी, और एक बेहतर जीवन की उम्मीद से मैं खो गया।

पर जमीनी हकीकत तो कुछ और थी। किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज में वैस्कुलर सर्जरी का अलग से डिपार्टमेंट खुला, मुझे ज्ञात हुआ मैं वहां पहुंच गया, मैंने सीनियर रेसिडेंसी ज्वाइन किया, मुझे आश्वासन मिला कि जल्द ही रिक्त स्थानों के लिए वैकेंसी निकलेगी और मुझे उस में स्थान मिलेगा, पर ऐसा हो न सका। कुछ महीनों के बाद परिस्थिति कुछ ऐसी हुई कि मुझे छोड़ना पड़ा ।

दो बार रिक्त स्थान के लिए वैकेंसी निकली मेरे संज्ञान में दोनों बार ही(मेरा) एप्लीकेशन पड़ा फिर भी साक्षात्कार ना हो सक। मेरे 10,000 रूपये गए वह तो ठीक थ।, पर मेरा शुरुआत से सरकारी मेडिकल कॉलेज में जाने का ख्वाब टूट गय। मैं प्राइवेट प्रैक्टिस के लिए शायद नहीं बना था पर मुझे इसमें कूदना पड़। फिर अलग समस्या आप एक ऐसी फील्ड के पहले चिकित्सक हैं जिसके इलाज के लिए मरीजों को इधर-उधर के चक्कर काटने पड़ते थे, जिनके पास पैसे थे वह दिल्ली मुंबई चले जाते थे, फिर भी हाथ में जॉब ना थी। लखनऊ के उस समय उपलब्ध सारे बड़े हॉस्पिटलों में गए, कुछ खुलने वाले थे उनमें भी गए, पर सभी ने बोला लखनऊ में वैस्कुलर सर्जरी का भविष्य नहीं है !! खैर जैसे-तैसे कुछ आसरा मिला पर लखनऊ में अलग ही ट्रेंड था ! खैर बैठने की जगह तो मिली।

  1. अब अपनी स्पेशलिटी के बारे में लोगों को और तो और डॉक्टरों को भी बताने की बारी थी, मैंने जो समझा अगर ब्रांच में कुछ ओवरलैप है तो समस्या और भी बढ़ जाती है। जैसे तैसे शुरुआत हुई कुछ अच्छे सीनियर्स मिले, पर्याप्त मार्गदर्शन मिला और जैसे तैसे अपनी भी गाड़ी चल पड़ी। आज स्थिति ऐसी है कि लगभग हर हॉस्पिटल जानता है कि वैस्कुलर और एंडोवैस्कुलर सर्जरी एक अलग विभाग है और ज्यादा देर तक मरीजों को बहाने से इससे वंचित नहीं रखा जा सकता। भारत के सारे बड़े मेट्रो सिटी में वैस्कुलर और एंडोवैस्कुलर सर्जरी एक स्थापित विभाग है। पर उत्तर-प्रदेश में वैस्कुलर के डॉक्टरों की बहुत कमी है| जिससे मरीजों को बेहतर इलाज नहीं मिल पा रहा है। अगर अपनी उपलब्धियों के बारे में कहें तो उत्तर प्रदेश में इस ब्रांच की शुरुआत सहारा हॉस्पिटल में एक डिपार्टमेंट स्टार्ट होने को हुआ। पर किसी चीज में प्रथम होने के अपने फायदे और नुकसान हैं, पहले होने से पहचान तो जल्दी मिल गई पर मरीजों का अभाव बना रहा, धीरे-धीरे समय बीतता गया, और पहचान के साथ मरीजों का भी आवागमन शुरू हुआ, इसमें ऑनलाइन सर्चिंग इंजन का भी योगदान भुलाया नहीं जा सकता
  2. कई ऐसे पेशेंट रहे जिनमे पैरो में घाव हो गया जो खून की सप्लाई न होने के कारण सुख नहीं रहे उसका  भी इलाज हुआ, वैस्कुलर ट्रामा में तो मरीजों की कटी हुई खून की नस का बाईपास तो हो जाता था , पर अथेरोस्क्लेरोसिस और स्मोकिंग , तम्बाकू के कारण होने वाले गैंग्रीन के केस में ज़्यदातर लोगो के पैर काटने पड़ते थे , शायद लोगो ने पहले बार जाना की दिल का बाईपास तो होता ही था पर हाथ पैर की खून की नसों का बाईपास एक नई शुरुवात थी।
  3. ऐसा भी नहीं जिसमे ऑपरेशन किया वो ठीक ही हो गया या उसका हाथ पैर काटने से बच ही गया , पर १० में दो लोगो का भी पैर काटने से बचा लेना भी अपने को खुश करने को काफी है. जब लखनऊ में आया तो एओर्टिक की सर्जरी करने के लिए ग्राफ्ट ( सिंथेटिक कपडे का पाइप) भी नहीं मिलता था।  एक बार फसने के बाद ग्राफ्ट अपने पास रखने लगा. ५ साल में २ बार काम आया जब rupture एओर्टिक अनुरिस्म के केस मिले एक बार मरीज की जान बचाने में सफल रहा और एक बार असफल पर ग्राफ्ट अपने पास रकने से काम आसान हुआ
  4. बहुत से वैस्कुलर सर्जरी के ऑपरेशन लखनऊ, उत्तर प्रदेश में पहली बार हुआ पर इसका भी ज़िक्र कम ही हुआ, चाहे वह मेडिकल कॉलेज में एओर्टिक अनुरिस्म का पहली बार ऑपरेशन |
  5. एओर्टिक सर्जरी रही हो या कांप्लेक्स हाइब्रिड थोरासिकएओर्टिक का रिपेयर हो, या वेरीकोस वीन के लेटेस्ट सर्जरी ग्लू, RFA, लेज़र या MOCA हो या एओर्टिक और वीनस स्टैंटिंग। किडनी के मरीजों में डायलिसिस के लिए A V फिस्टुला तो सामान्यता बन जाता था, पर कुछ काम्प्लेक्स फिस्टुला, क्लॉटिंग फिस्टुला को खोलना या फिर ग्राफ्ट के लिए मरीजों को बाहर जाना पड़ता था ।
  6. अब इन 5 सालों में मेरा जो प्रमुख उद्देश्य लोगों को वैस्कुलर सर्जरी के बारे में बताने मैं ख़ास तौर पे चिकित्सा समुदाय को, वो शायद सफल रहा है लोगो में इस ब्रांच के बारे में जानकारी बढ़ी है उम्मीद है, कि जल्द ही सारे प्रमुख हॉस्पिटलों में यह ब्रांच होगी और जो लोग छदम रूप से अपने आपको वैस्कुलर सर्जन या इंडोवैस्कुलर सर्जन कहते हैं उनकी कमी होगी।

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This Post Has 16 Comments

  1. Dr Siddharth

    Dr Yashpal is indeed a very capable, experienced and famous doctor in Uttar Pradesh. He is the last hope for the patients of vascular disorders in this state. Please keep it up.

      1. Abhimanyu Singh

        This is nothing less than a boon for the entire UP including Lucknow. No one can understand better than you how challenging it is to make a new sky…Great and well wishes.

  2. Dr pradeep

    Great Dr yashpal singh
    Continue your journey with big achievement in future.

  3. Manjusha

    बहुत सुंदर।
    आप कार्यकुशल होने के साथ एक उत्तम व्यक्तित्व के धनी हैं। ईश्वर आपको सदैव सुमार्ग की ओर प्रेरित करें।

  4. Dr p k srivastava

    My good wishes always with you 😚

  5. Praveen

    Keep going Dr Yashpal.
    Sky is the limit.

  6. Dr vijay pandey

    Wah bhai…chaa gaye aap…aapne apni mehnat se apne liae jagah banayi hai…aapki kaamyabi ki shubhecha ke saath bahut bahut shubhkaamnaye…

  7. Pankaj

    Excellent yashpal. Kee it up

  8. Dr. Abhi

    Wow sir outstanding

  9. Dr k k gupta

    Great work Dr yashpal

  10. Shashi Kant Pathak

    Great sir
    Great Dr yashpal singh Sir
    Continue your journey with big achievement in future.

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