डीप वेन थ्राम्बोसिस (DVT) क्या होता है?
- मेडिकल की फील्ड में हम आम जनता को जागरूक करने के लिए बहुत से अभियान और दिन मानते है अभी जैसे की हमने किडनी डे के बारे में बात किया था. वैसे ही मार्च का महीना हम थ्रोम्बोसिस अवेयरनेस महीने के रूप में मानते है।
- खून की नसे दो प्रकार की होती है एक जिससे दिल से ब्लड शरीर के सभी हिस्सों में जाता है दूसरा जिससे वापस ब्लड / खून दिल की तरफ जाता है, पहले को हम आर्टरी दूसरे को वेन कहते है’
- जब हाथ या पैरो से ब्लड वापस ले जाने वाली अंदर की वेन में कोई खून का थक्का जैम जाता है तो उसे डीप वीन थ्रोम्बोसिस कहते है.
- मुख्यता यह जानलेवा नहीं होता पर अगर ठीक ढंग से इसका इलाज या उचित समय पर इलाज न हो तो यह कुछ परिस्थितियों में जानलेवा हो सकता है. कभी कभी पैरो या हाथो में बना खून का थक्का फेफड़ो में चला जाता है जिसे हम पल्मोनरी एम्बोलिस्म कहते है ( P E ). एक दशक पहले तक हम मानते थे की यह बीमारी केवल पश्चिमी देशों में ही होती है, पर अब अभूत से शोध पत्र इंडिया से भी आ गए है जिससे ये मालूम होता है की यह बीमारी इंडिया में भी उतनी ही आम समस्या है जितनी की बहार के देशो में।
- अस्पतालों में होने वाली अचानक मृत्यु में इनका एक अहम् किरदार है, पी जी आई चंडीगढ़ में हुई एक शोध के अनुसार हॉस्पिटल में हुई मौतों की ऑटोप्सी में यह बात सामने आई की १७% के आस पास मरीजों में पल्मोनरी एम्बोलिस्म था , इससे हम समझ सकते है की ये कितना खतरनाक हो सकती है. डीप वेन थ्रोम्बोसिस के मुख्य लक्षण पैरो में सूजन,नीला पन , दर्द होता है जयदा सूजन होने पर पैरो ठंडा भी पड़ सकता है. डीप वीन थ्रोम्बोसिस की समस्या उन लोगो में हो सकती है जिनको कैंसर है , खून में कोई जेनेटिक डिफेक्ट ( थ्रोम्बोफिलिअ ) जिन लोगो का खून ज्यादा गाढा होता है ,जैसे की स्मोकिंग या पहाड़ो पे रहने वाले लोग. कई बार ये समस्या बहुत लम्बी यात्रा या जयदा एक्सरसाइज करने के बाद भी हो जाती है.
- उन मरीजों में भी इनके होने के संभावना जयदा रहती है जो बहुत दिनों से बीमार है, बिस्तर पर ही लेटे रहते है ,जो लम्बे समय से हॉस्पिटल में मुख्यता आई सी यू में एडमिट है. उन मरीजों में भी जिनकी कोई बड़ी , लम्बी सर्जरी होती है.
- इस बीमारी से बचने के उपाय है, खास तौर पर जिनको हॉस्पिटल में एडमिट होने के बाद होता है , हम एक रिस्क अस्सेस्मेंट करके , स्कोर करके जिनमे इसके होने की सम्भावन ज्यादा है उनको इसको होने से रोकने के लिए कुछ खून पतला करने की दवाये होती है वो दे सकते है, सर्जरी के बाद मरीज को जल्दी चला कर फिजियोथेरेपी करा कर भी इसको रोकने की कोशिश कर सकते है. एक बार थ्रोम्बोसिस होने पर इसके दुबारा होने की सम्भावना १० से ४० % तक होती है खास तौर में जिनके खून में कोई जेनेटिक डिफेक्ट है. अत; ऐसो मरीजों को उचित सलाह जरूरी होती है
Pingback: 'विश्व किडनी दिवस' कब और क्यों मनाया जाता है? - vascularsurgeonlucknow.com
I am truly thankful to the owner of this web site who has shared this fantastic piece of writing at at this place.
Pretty! This has been a really wonderful post. Many thanks for providing these details.
There is definately a lot to find out about this subject. I like all the points you made